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13:21, 2 जनवरी 2016
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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
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<poem>
''' विज्ञापन – तीन '''
मार्ग दर्शक पर
भविष्य के राजनीतिज्ञों के पोस्टर चिपके थे
जो राजनीतिज्ञ कम ख़ुंख़ार ज़्यादा दिख रहे थे
और मैं एक महानगर में रास्ता भटक गया था
जहाँ किसी अजनबी तो क्या
स्वयं को भी पता बताने के लिए
किसी के पास समय नहीं था
इन राजनीतिज्ञों के पोस्टरों के बीच से
मार्ग दर्शक को पढऩा मेरी विवशता थी
जिसके आधार पर आगे बढ़ा और
श्मशान पर पहुँच गया
जहाँ लिखा था
महानगर आपका स्वागत करता है।
</poem>