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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
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<poem>
''' कोचिंग सेन्टर - दो '''
उसने टाप किया इंजीनियरिंग प्रवेश की श्रेष्ठतम् परीक्षा
उसका फोटो छपा बड़े-बड़े होर्डिंगों पर
कोचिंग सेन्टरवाले करोड़ों कमाए उसके नाम पर
माँ-पिता गर्व से सीना-ताने घूमते रहे मुहल्ले में
सम्मान हुआ उनका भी
बहुत सुन्दर, बहुत ही उल्लासपूर्ण
सब कुछ स्वप्निल
एलबम में संजोकर रख लिया गया
आनन्द के इन क्षणों को
बच्चा पढ़ लिख कर विदेश चला गया
कुछ वर्षों तक मेल और फ़ोन होता रहा
धीरे -धीरे घटती गयी आवृत्ती
माँ-पिता पलटते रहे अपनी स्मृतियाँ और
एलबम से गायब हो गया
बच्चे का चेहरा
देश ने नागरिकता के फ़र्ज से
कर दिया था उसे मुक्त
कोचिंग सेन्टरवाले दूसरे बच्चे का फोटो
टांककर अपने होर्डिंग्स् पर
फिर कमा रहे थे करोड़ों
छटपटा रहे थे माँ-पिता
तलाश रहे थे अपना बच्चा
बच्चा
जिसको कोचिंग कराने के लिए रेहन रखा था
अपने सपनों और जीवन की ख़ुशियों को
बहुत आगे निकल गया था
अब उसकी भाषा और नागरिकता दोनों ही
माँ-पिता की पहुँच से बहुत दूर थे
देश-प्रेम और मातृभूमि को
अपने शब्दकोश से बाहर खदेड़ कर
बच्चे ने ग्रीनकार्ड जुगाड़ लिया था
वह बहुत बड़ा आदमी बन गया था
इतना बड़ा कि उसके जीवन में दूर-दूर तक
सिर्फ डालर था और उसका बवंडर
इस बवंडर में
माँ-पिता और जन्मभूमि सब उड़ गए थे।
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