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14:47, 15 जनवरी 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
मेळै अर भीड़ में
फरक रात-दिन रो।
भीड़
मन बायरी
मगज बायरी
जिणरो कोनीं हुवै
कोई दीन-धरम।
मेळै रै नांव सूं
घेर-घुमेर नाचण ढूकै
मन रो मोरियो
मेळै मिस
हियै हरख
मूंडै मुळक
अर आंख्यां चमक
सतरंगी सुपनां री।
मन मिळ्यां
हुवै मेळो।
</poem>