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प्रातहि उठि दोऊ / प्रेमघन
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|संग्रह=युगमंगलस्तोत्र / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
प्रातहि उठि दोऊ राधिका कृष्ण सोके।
तर सुभग लता के तीर मैं भानु जाके॥
हरि मुरलि बजावैं राधिका द्रिग नचावैं।
बहु भावैं दिखावैं कोटि कामैं लजावैं॥
हरि प्रिय दिशि जोहैं देखि कै चित्त मोहैं।
कुटिल जुगल भौंहें सीस पै बिन्दु सोहैं॥
अलकावलि काली चीकनी घूँघुराली।
जग मैं अस को है देखि कै जो न मोहै॥
</poem>
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