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प्रार्थना - 12 / प्रेमघन

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{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
सम्पति सुयस का न अन्त है विचार देखा,
::तिसके लिये क्यों शोक सिन्धु अवगाहिये।
लोभ की ललक में न अभिमानियों के तुच्छ,
::तेवरों को देख उन्हें संकित सराहिए॥
दीन गुनी सज्जनों में निपट विनीत बने,
::प्रेमघन नित नाते नेह के निबाहिये।
राग रोष औरों से न हानि लाभ कुछ उसी
::नन्द के किसोर की कृपा की कोर चाहिए॥
</poem>
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