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06:50, 3 फ़रवरी 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
लाज न बुद्धि सो काज कछू, बनई सब बात बिचित्र नवीनी।
काह कहूँ घनप्रेम तुम्हें, करताहुँ के नाम की लाज न लीनी॥
अष्टमी के निसि को ससि खास, अकास प्रकासन के हित दीनी।
वा सुकुमारी सुहासिनी की, अलकावलि की ककही नहिं कीनी॥
</poem>
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