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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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<poem>
सच के लिए तूने उठाया सर, भले कुछ देर से
तेरी तरफ भी आयेगा पत्थर भले कुछ देर से

माना कि बढ़ता जा रहा है काफ़िला फिर झूठ का
जीतेगा आखिर सच का ही लश्कर, भले कुछ देर से

नन्हा परिंदा टहनियों पर जो फुदकता है अभी
छूयेगा इक दिन उड़ के वो अम्बर, भले कुछ देर से

तौहीन थोड़ी-सी हवा की हो गई तो क्या हुआ
जल तो उठा दीपक मेरा बुझ कर, भले कुछ देर से

हो हौसला, तो डूबती कश्ती को भी साहिल तलक
ले जाता है उम्मीद का सागर, भले कुछ देर से

पल भर का इतराना है काले बादलों का, देखना
निकलेगा सूरज चीर कर बाहर, भले कुछ देर से

तन्हा अभी बेशक है तू, घबड़ा न ऐ मिसरे ! ज़रा
बाँधेगा तुझ को शेर में शायर, भले कुछ देर से





(समावर्तन, सितम्बर 2013)
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