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देख पंछी जा रहें अपने बसेरों में / गौतम राजरिशी
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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
भीड़ में गुम हो गये सब आपसी रिश्ते
हर बशर अब क़ैद है अपने ही घेरों में
</poem>
(लफ़्ज़, सितम्बर-नवम्बर 2011)
Gautam rajrishi
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