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06:39, 22 फ़रवरी 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
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<poem>
खिलि मालती बेलि प्रफुल्ल कदम्बन,
::पैं लपटी लहरान लगी।
सनकै पुरवाई सुगन्ध सनी,
::बक औलि अकास उड़ान लगी॥
पिक चातक दादुर मोरन की,
::कल बोल महान सुनान लगी।
घन प्रेम पसारत सी मन मैं,
::घनघोर घटा घहरान लगी॥
</poem>
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