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07:25, 22 फ़रवरी 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
जेवत जराऊ जोति जीगन जनात किल,
::किंकिनी लैं कूकनि मयूरन की डार डार।
सारी स्यामताई पै किनारी चंचला की लखि,
::प्रेमी चातकन गन दीनो मन वार वार॥
पुरवाई पवन प्रभाय छहराय छवि,
::देखो तो दिखात औ दुरत चंद बार बार।
बदन विलोकन को रजनी रमनि,
::बस प्रेमघन घूँघटैं रही हैं जनु टार टार॥
</poem>
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