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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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<poem>
प्रस्ताव अनुमोदित हुआ
अब मामला लंबित हुआ

सब कह दिया आँखों ने जब
तो मन ज़रा हर्षित हुआ

जिन कदमों से रस्ता खुला
उन के लिये वर्जित हुआ

हर फैसला टलता गया
जब-जब दिवस निश्‍चित हुआ

जब मिट गये सारे सबूत
अपराध फिर साबित हुआ

पर्दे पे इक पैबन्द था
पूरा महल इंगित हुआ

इक नाम तेरा ज्यों जुड़ा
क़िस्सा मेरा चर्चित हुआ

है शब्द की मजलिस वहाँ
अक्षर यहाँ विस्मित हुआ




(लफ़्ज़, दिसम्बर-फरवरी 2011)
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