{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह= पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
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<poem>
तू जब से अल्लादिन हुआ
मैं इक चरागेचरा-जिन हुआ
भूलूँ तुझे? ऐसा तो कुछहोना न था, लेकिन हुआ
पढ़-लिख हुए हुये बेटे बड़ेहिस्से में घर गिन-गिन हुआ
काँटों से बचना फूल की
चाहत में कब मुमकिन हुआ
झीलें बनीं सड़कें सभी
बारिश का जब भी दिन हुआ
रूठा जो तू फिर तो ये घरमानो झरोखे बिन हुआ
आया है वो कुछ इस तरह
महफ़िल का ढब ढ़ब कमसिन हुआ
{त्रैमासिक (अभिनव प्रयास, जुलाई-सितम्बर 2009}</poem>)