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07:11, 9 मार्च 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल
|संग्रह=
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<poem>
नारे थे इतने ऊँचे
और सघन इतने
कि वह काँप गया
शब्द स्पष्ट हुए
- भारत माता की जय -
वह सुस्थिर हुआ अपने लोग हैं
जिसकी जय के लिए कटिबद्ध ये
उसी का आत्मज मैं . . .
पर पलक झपकते डण्डे
हाथों में थमें झण्डों के बरस गए
चिथड़ा चिथड़ा हुआ रंग सफेद हरा
केसरिया गडमड हुआ एक ही रंग में . . .
निपट सूनी स्याह खोह में उतरते
उसने समझना चाहा
यह किसकी मां की जय पुकारते हैं।
</poem>