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बीकानेर-4 / सुधीर सक्सेना

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बीकानेर में
चौराहे पर प्रतिमा
निरभ्र आकाश तले
जीती जागती सी जीवंत

अगरचे ऐड़ लगा दे घुड़सवार
तो न जाने कहां जाकर रुके घोड़ा
मगर ऐड़ नहीं लगाता घुड़सवार
यूं कि उसे भाता है बीकानेर
उसके ख्वाब में भी नहीं बीकानेर छोड़ने का ख्याल

सोचो तो जरा
गर घोड़ा नहीं
और नहीं शहसवार
तो काहे का चतुष्पथ
और काहे का बीकानेर
</poem>
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