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मोम के जिस्म में एक धागा सजा रखा है / चाँद शुक्ला हादियाबादी
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16:42, 7 मई 2016
उन्हीं को रूह की साँसों में जला रखा है
कभी ये चूमती हैं लब तेरे कभी रुख़सार
तेरे
तूने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रखा है
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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