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तेरा हाथ मेरे काँधे / बशीर बद्र
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पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है<br>
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है।
कुछ मिला कुछ गया तेरी यादों में <br>
क्या दें तुमको पास कुछ भी नहीं
सांस आती है और सांस जाती सनम<br>
एक तेरे सिवा दिल में कुछ नहीं
Pratishtha
KKSahayogi,
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