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सकल सृष्टि पूजन करे तुमरी सदा गणेश ||
नमन करत हूँ शारदा सकल गुणन की खान |
नमहूँ सुकवि पुनि देव सब चरन कमल को ध्यान ||प्रभु चरित्र आनन्द अति रुचिकर करहूँ बखान ||
जाही सुने चित देय नर पावत पद निर्वाण ||
इसलिए नहीं धनवान किया,
सात्विक भाव ही रहा सदा,
प्रिय दिल में कब अरमान किया |  केते ही प्रवीण फँसे माया के दल-दल में , ऐसा है विचित्र जाल भेद हूँ न पता है |स्त्री और बाल बच्चे धाम धान संवार राखे , एते नष्ट होते कष्ट दिल में उठता है |ऐसी यह माया, तासे बिगर जात काया, लाखों भरमाया ऐसा झूंठ व्यर्थ नाता है |कहता सुदामा प्रिय राम-कृष्ण राम भजो, आनन्द ले सच्चा विप्र जो गोविन्द गुण गाता है |अपना ना कोई प्रिया सुन री दे ध्यान चित्त, संसार ये असार तामे झूठा ही नाता है |स्वार्थ के मीत देख ना माने , कर प्रीत देख, ऐसे सब मात-तात जात व्यर्थ भ्राता है |सुत और दारा देख प्यारा से भी प्यारा देख, सारा ही पसारा देख द्वन्द सा दिखता है |कहता सुदामा तन धन अरु धाम झूठा , सच्चा तो वाही विप्र गोविन्द गुण गाता है | बेर-बेर समझाव हूँ, आवत नहीं यकीन |माया में फँस-फँस मरे , केते चतुर प्रवीण ||
'''सुदामा- द्वारपाल से'''
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