1,135 bytes added,
21:05, 22 मई 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
लिखलहुँ गीत आइ धरि जतबा,
तोरहिटा उद्वेग में !
हेरा गेल हे हम्मर धरती !
तोरहिटा आवेग मे !!
दिग्-दिगन्तमे देखि रहल छी
तोरेटा अनुहार हम !
दुलखैत जनु धूमि रहल छी
हियकेर बतहा भार हम !
लोक कहै अछि एना करै छह
व्यर्थ अनेरे सोच की !
निर्मम जाहि देश केर मालिक
ताहि भूमिकेर रोच की ?
मुदा मनावी कोना मोनकें
जे डूबल आवेग में ??
लिखलहुँ गीत आइ धरि जतबा तोरहिटा उद्वेगमे।
</poem>