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21:30, 22 मई 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
तार टूटल भेल की झंकार बाँकी अछि ?
मानल हेरा गेल आइ संगी हमर ममता,
मानल गमौलहुँ स्नेहकेर आधार सभटा,
सत्ते गामौने जन्मकेर आगार हम छी,
गेले लुटा सभ फूल जँ अंगार बाँकी अछि !
मानल हेरा गेल स्वप्न किछु अछि
आइ हम्मर,
मानल कि छूटल बन्धु किछु छथि
आइ हम्मर,
मानल की लागल राजपथ पर
रोक अछि हमरा,
मानल खुरूरबट्टी बनल
अछि नियति हम्मर,
ओझराएल छी तँ भेल की
मनुहार बाँकी अछि !
ज्ञात हमरा उमड़ि रहले
विपति केर बादरि,
ज्ञात हमरा बढ़ि रहल
अभिसन्धिकेर काजर,
आओत गऽ जे बिहाड़ि
ओकरासँ सुपरिचित हम,
मुदा कनियो हृदय हम्मर एतए नहि चंचल !
सोचओ कंओ किछु;
किन्तु कनियो रोष नहि हमरा,
साँचे एखनियो हियमे स्नेहक धार बाँकी अछि।
</poem>