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21:40, 22 मई 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
पसरल डगर आ असगर बनल हम
ससरल मुदा कहुना कए जा रहल छी।
देखाइछ चतुर्दिक कारी अन्हरिया
ओम्हर बीछ अप्पन तनने कि डंकों
पुफकार छोड़ए साक्षात नागे
ने मारब अभीप्सित संस्कार वाधकं
बाँटय जें अमरित जगतमे कि मंगनी
हमराले ओकरा विषक याम बाँचल।
जे छाहरि देखाइछ ओहो छी कि छद्मे ?
पुरत बाँहि सत्ते बँचल ई जे अप्पन??
हरियर ई धरती, नील रंगक अकाशो,
चकमक तरेगन जे हमरा प्रबोधयं
यदि थिक ई झूठे आ फुसियाहि आशा,
फसियाह कहयो नै आस्था ई हम्मर,
लड़ब जा मरब नहि, नै बिलम्ब क्षणो भरि
आबओ जे आजोत नियतिकेर बवंडर
</poem>