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|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
कठिन अछि ने कम ई हाटो उसारब।
पसारल ओना लऽ बहुत स्वप्न मनमे,
व्यष्टिक जो चिन्तन बनल धन समष्टिक।
चलल हाट अछि ई आ बिक्री ने कम अछि
नामी ने कम ई खिरल नाम सागरो।
नामे एकर भेल जेना आइ दुश्मन,
अकारण बनल शत्रु एकरा बिगाड़य।
हटाबय जँ चाही मानय ने लोके,
सिनेहक ई फानी बनल अछि समस्या।
बनायबकोनो वस्तु ओना नहि कठिन कम,
कठिन अछि ने कम ई रंगलकें धोखारब।
कठिन अछि ने कम ई हाटो उसारब।
</poem>
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