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स्वप्न / अज्ञेय

1 byte removed, 11:30, 31 मार्च 2008
भाप के अग्निगर्भ बादल: <br>
बिना ठोस रपटन में उगते, बढ़ते, फूलते <br>
::अन्तहीन कुकुरमुत्ते, <br>
न-कुछ की फाँक से झाँक-झाँक, झुक कर <br>
::झपटने को बढ़ रहे भीमकाय कुत्ते। <br>
अग्नि-गर्भ फैल कर सब लील लेता है। <br>
केवल एक तेज--एक तेज—एक दीप्ति: <br>
न उस का, न सपने का कोई ओर-छोर: <br>
बिना चौंके पाता हूँ कि जाग गया हूँ। <br>
भोर... <br>
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