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काँच के पीछे की मछलियाँ / अज्ञेय
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03:13, 25 फ़रवरी 2008
वैसी ही बे-झपक आँखों से ताकता हुआ <br>
जैसी से ताकती हुई ये मछलियाँ <br>
स्वयं खाई जाती हैं।
<br>
<br>
ज़िन्दगी के रेस्त्राँ में यही आपसदारी है <br>
रिश्ता-नाता है-- <br>
कि कौन किस को खाता है।
Anonymous user
Sumitkumar kataria