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दिल्ली झण्डा और देशगानघर हो या मौसमसाधु जंगल गइया महान ।कुदाल या कविताएँलय टूटी तो सब के सब घायल होंगे।
सबके सब ठिठक गए आकेलोहे जीवन से उलीच के फाटक पर पाकेजीवन को भरतीटिन का एक टुकड़ा लटक रहाकविता उन्मुख और विमुख दोनों करती'कुत्ते अगर न रोपे गए करीने से रहिए सावधान ।'पौधेहरे-भरे तो होंगेचेहरे पर उग आई घासेंसड़ती उम्मीदों की लाशेंवे जब भी सोचा करते हैंउड़ते रहते हैं वायुयान ।जंगल होंगे।
बातों को देते पटकनियाताल-छन्दचश्मा स्याही टोपी बनियाध्वनियों शब्दों की आवृत्तियाँउन लोगों नें फिर बदल दियासुर में भी होती हैं अक्सर विकृतियाँअपना पहले वाला बयान ।कोल्हू-सा चलना तो लय हो सकता हैलकिन उसमें जुते बैल की स्मृतियाँ !
केसरिया झण्डा शुद्ध लाभकविता का विकल्प सिर्फ़ कविता होतीजैसे समझौता युद्ध लाभरस्ता चलते कुछ लोग हमेंदेते रहते हैं दिशा ग्यान ।मौसम वही कि जिसकी प्यास नहीं मरती
एक गीत और एक बंजाराचाहे जितना ‘आज’ हो गए हों लकिनअाओ खुरचें यह अन्धियाराहम उतना ही बचेंगे जितना ‘कल’ होंगे।नाख़ूनों फल चमकती है कुदाल की भाषा सपनें में लिख डालेंरोटी घर ख़ुद ही परिभाषित होता अपने मेंलय का संविधान ।रख-रखाव आवश्यक होता हैमन के भीतर कविताओं के छपने में कविता में संकोच और रिश्तों में लयआरोहों-अवरोहों का ही नाम समयग़ममरहमलहजे का ख़म और कम से कमबातों में हो दम तो सब कायल होंगे। हम इस पार रहे उस पार रही कविताकविता के भीतर ही हार रही कविताख़तरों का भययानी लय अनदेखा करअपने पॉव कुल्हाड़ी मार रही कविता सामन्ती कविताओंकवि-सामन्तों सेबचना होगा कविता को श्रीमन्तों सेजीवन की गतिसंगति में हो, प्रसरित होतभी प्रश्न कविताओं के भी हल होंगे।
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