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सत्य विचार कहूँ सुनारी प्रिय यो जग झूठ मुझे हरसावे |
प्रीति बिना परमेश्वर के धृक है धन जो धनवान कहावे ||
धन्य उन्हें धन राम अमूल्य की खोज लगा कर मौज उडावे |
ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लाखवे ||
भक्त वही भगवान भजे धन दौलत पाय न राम भुलावे |
दान करे सनमान करे नर संतान को निज शीश झुकावे ||
मन्दिर बाग़ तड़ाग बनाकर जीवन को जग माही बितावे||
ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लाखवे ||
पति देव विनती करहुँ मान लेहु मम बात |
दुःख संकट सब टारी हैं वह त्रिभुवन के नाथ ||
स्वामी ने सब ठीक कहा,
जो हाल द्रव्य के होते हैं,
है दिल में दर्द यही मेरे,
जब भूखे बच्चे सोते हैं |
है हाल वही पति जागने पर,
जो हाल काल में है गुजरा,
हर रोज नहीं देखा जाता,
गम खाली से यह पेट भरा |
जाओ जल्दी देरी न करो,
वह दीनानाथ कहाते हैं,
भक्तों के हितकारी बन,
बिगरी को शीघ्र बनाते है |
तुम धन के हित सकुचाते हो,
दर्शन हित ही तो जाओ,
बिन मांगे ही दे देंवेगे,
द्रव्य लेकर नाथ शीघ्र आओ |
प्रसन्न चित्त से सेवा कर,
नित गोविन्द के गुन गाऊँगी,
तुम कृष्ण चन्द्र के गुन गाना,
सेवा कर प्रभु रिझऊँगी |
 
आप विचार कियो अति सुन्दर मोर विचारन को उर धारो,
मैं कर जोर करूँ विनती पति कृष्ण सखा निज मीत तिहारो |
जाय मिलो अरु हाल कहो अति कष्ट करे दुःख दैन्य हत्यारो,
ये सब बात विचार पति अब कृष्णपुरी तुम शीघ्र सिधारो |
 
मान करे मिलते ही मन-मोहन दूर करें विपदा दुःख थारो,
दौलत पाय भजो हरि को पति जीवन को फल नेक विचारो |
बात कहूँ फिर नाथ यही हरि दर्शन से यह जन्म सुधारो,
दूर न है कबहूं वह ग्राम बसे मन मोहन नन्द दुलारों |
 
भक्त सुदामा ने कहा, सुनरी बावरी वाम|
झूठा मंगू द्रव्य क्या, निर्धन का धन राम ||
 
मानस को तन है तो, मन करके भजो ईश,
अकारण दयालु दाता, सदा शुभकारी है |
श्रद्धा अरु भक्ति से, शक्ति कर अमोघ पैदा,
अनुभव को मार्ग सत्य, मिथ्या संसारी है |
पूर्व जन्म पुण्यहूँ से, मार्ग सुमार्ग मिले,
जन्म-जन्मान्तर की बिगरी सुधारी है |
कहता है सुदामा प्रभु ही प्रतिपाल करे,
उनही को सत्य प्रिया गावे वेद चारि हैं |
 
जड़ अरु चेतन में प्रभु का प्रकाश प्रिये,
मानव विचित्र खूब बुद्धि के बनाये हैं |
केते हैं भक्त योगी योग में तल्लीन रहते,
केते ही अफंडी बन दुनियां में आये हैं |
केते हैं शरीफ सज्जन जन सुशील शील,
केते ही मानव शुद्ध कृष्ण गुण गए हैं |
कहता सुदामा प्रिये राम-कृष्ण भजे सार,
बात यह विचारि देख वेही सुख पाए हैं |
 
जो कयम चीज नहीं रहती,
उस चीज का मांगना वाम वृथा,
जीवन मेरा तो भगवत है,
धन माल और आराम वृथा ।
सब समय हमारा बीत गया,
यह चौथापन भी आन चला,
श्रीराम कृष्ण रट मगन रहा,
दुःख सुख का मुझे पता न चला ।
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