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:::'''वन्दना'''
बन्दहुँ राम जो पूरण ब्रह्म है, वे ही त्रिलोकी के ईश कहावें।
लिखूं सुदामा की कथा यथा बुद्धि है मोर।
करहूँ कृपा शिवदीन पर नगर नागर नन्द किशोर॥   '''सुदामा- द्वारपाल से''' महाराज कृष्ण क्या करते है, है उनसे काम मेरा भाई।हम बचपन के सखा मित्र, वह होते परम गुरू भाई।। जाकर के उनसे खबर करो, यह हाल बता देना सारा।मैं ब्राह्मण द्रविड़ देश का हूं, दिल ख्याल करा देना सारा।।  '''द्वारपाल- कृष्ण से''' जा करके द्वारपाल ने जब श्रीकृष्ण चन्द्र से हाल कहा। इक दुर्बल ब्राह्मण खड़ा खड़ा कहता है श्री गोपाल कहां।चाहता है प्रभु से मिलने को प्रभु दर्शन का अनुरागी है।है मस्त गृहस्थ में रह करके जानो सच्चा वैरागी है।। वस्त्र फटे अरु दीन दशा, इक ब्राह्मण दीन पुकारत है।द्वार खड्यो चहुं ओर लखे वह निर्मल नेक कहावत है।।पास नहीं कछु भी धन दौलत बौलत ही मन भावत है। कृष्ण रटे मुख से निशि-वासर नाम सुदामा बतावत है।। आप सिवा न चहे अरु को, हम को वह दीखत है अति ज्ञानी।हर्ष विषाद नहीं कछु व्यापत, कृष्ण सिवा कछु लाभ न हानी।।है मति शु़द्ध पवित्र महा अति सार सुधामय बोलत बानी।कौन पता किस ग्राम बसे अरु दीख रहा मति सात्विक प्रानी।।
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