गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
कुछ दिन / रश्मि भारद्वाज
3 bytes added
,
19:09, 19 जून 2016
देह के जमे शिलाखण्ड से
मैं उतार कर अपनी केंचुली
समा देना चाहती
है
हूँ
ख़ुद को
सख़्त चट्टानों के बीच
इतने क़रीब कि वह सोख ले मेरा उद्दाम ज्वर
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,627
edits