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<poem>
उगलै लत्तर में कानी, लागलै पत्तर में पानी,
हवा में मारै पेंगµअरेपेंग-अरे, काँही टुटियोनि जाय ।
मुस्कै छै अनजाने मंद, गलबांही देनें छै गंध,
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