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टुटियोनि जाय / उचित लाल सिंह
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22:44, 21 जून 2016
<poem>
उगलै लत्तर में कानी, लागलै पत्तर में पानी,
हवा में मारै
पेंगµअरे
पेंग-अरे
, काँही टुटियोनि जाय ।
मुस्कै छै अनजाने मंद, गलबांही देनें छै गंध,
Rahul Shivay
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