4,033 bytes added,
17:33, 23 जून 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
}}
{{KKCatKavita}}
[[Category:लम्बी रचना]]
{{KKPageNavigation
|पीछे=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 11
|आगे=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 13
|सारणी=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी
}}
<poem>
सुन्दर रम्य मनोरम मन्दिर द्वार सुधाम लखे मन भाए |
देखत ही शुभ साज सजावट और बनावट को हरषाए |
काहि कहूँ दिल माहि विचारत काहि कहूँ किस कारण आए |
कृष्ण साखा जग-पलक के करतूत कला लाख चाव बढ़ाये |
'''सुदामा- द्वारपाल से'''
देख द्वारिका दृश्य को चकित भयो हरषाय |
कहाँ कृष्ण पूछन लगे द्वारपाल से जाया ||
'''= गीत ='''
कृष्ण हमारे हम उनके हैं, कृष्ण से शीघ्र मिलादो |
विप्र सुदामा द्वार खडयो है, नाम हमारा बतादो ||
हम साथी बचपन के मित्रो, मीत हमारा माधो |
भवसागर से नव हमारी, कृष्णा पर लगादो ||
काम क्रोध अरु लोभ मोह को, हम से दूर भगादो |
अनपायनी भक्ति निश्छलता, ह्रदय मांहि जगादो ||
अर्जी हमारी भैया श्याम सखे को सुनादो |
कृष्ण हमारे हम उनके हैं, कृष्ण से शीघ्र मिलादो ||
महाराज कृष्ण क्या करते है, है उनसे काम मेरा भाई।
हम बचपन के सखा मित्र, वह होते परम गुरू भाई।।
जाकर के उनसे खबर करो, यह हाल बता देना सारा।
मैं ब्राह्मण द्रविड़ देश का हूं, दिल ख्याल करा देना सारा।।
'''द्वारपाल- कृष्ण से
'''
जा करके द्वारपाल ने जब श्रीकृष्ण चन्द्र से हाल कहा।
इक दुर्बल ब्राह्मण खड़ा खड़ा कहता है श्री गोपाल कहां?
चाहता है प्रभु से मिलने को प्रभु दर्शन का अनुरागी है।
है मस्त गृहस्थ में रह करके जानो सच्चा वैरागी है।।
नाम आपका रैन दिन जपत सदा व्रज राज |
औरन से नहीं कछु कहे है तुम ही से काज ||
वस्त्र फटे अरु दीन दशा, इक ब्राह्मण दीन पुकारत है।
द्वार खड्यो चहुं ओर लखे वह निर्मल नेक कहावत है।।
पास नहीं कछु भी धन दौलत बौलत ही मन भावत है।
कृष्ण रटे मुख से निशि-वासर नाम सुदामा बतावत है।।
<poem>