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प्रभु मिले गले से गला लगा
चरणोदक लीनो धो धोकर।
बोले प्रेम भरी वाणी
पुछे हरि बतियां रो-रो कर।
निज आसन पे बैठा करके
सब सामग्री कर में लीनी।
चित प्रसन्नता से कृष्ण चन्द्र
विविध भांति पूजा कीनी।
बोले न मिले अब तक न सखा
तुम रहे कहां सुध भूल गये।
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी
प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये।
रुक्मणि स्वयं सखियां मिलकर
सब प्रेम से पूजन करती थी।
स्नान कराने को उनको
निज हाथों पानी भरती थी। चंवर मोरछल करते थे सेवा से दिल न अघाते थे। निज प्रेमी के काम कृष्ण सब खुद ही करना चाहते थे। यह आनंद अद्भुत देख-देख, द्विज सोचे यह जाने न मुझे | करते हैं स्वागत धोखे में, प्रभु शायद पहचाने न मुझे | भक्त की कल्पना सभी, उर अन्तर्यामी जान गए | भक्त सुदामा के दिल की, बाते सब पहचान गए | 
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