लेखक: [[शिवमंगल सिंह सुमन]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन]]|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~आज सिन्धु ने विष उगला हैलहरों का यौवन मचला हैआज ह्रदय में और सिन्धु मेंसाथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।
आज सिन्धु ने विष उगला है<br>लहरों का यौवन मचला है<br>के स्वर में कुछ बोलोआज ह्रदय इस अंधड में और सिन्धु साहस तोलोकभी-कभी मिलता जीवन में<br>साथ उठा है ज्वार<br><br>तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।
लहरों यह असीम, निज सीमा जानेसागर भी तो यह पहचानेमिट्टी के स्वर में कुछ बोलो<br>इस अंधड में साहस तोलो<br>पुतले मानव नेकभी-कभी मिलता जीवन में<br>तूफानों का प्यार<br><br>ना मानी हार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।
यह असीम, निज सीमा जाने<br>सागर की अपनी क्षमता हैपर माँझी भी तो यह पहचाने<br>कब थकता हैमिट्टी के पुतले मानव ने<br>जब तक साँसों में स्पन्दन हैकभी ना मानी हार<br><br>उसका हाथ नहीं रुकता हैइसके ही बल पर कर डालेसातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br> सागर की अपनी क्षमता है<br>पर माँझी भी कब थकता है<br>जब तक साँसों में स्पन्दन है<br>उसका हाथ नहीं रुकता है<br>इसके ही बल पर कर डाले<br>सातों सागर पार<br><br> तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।