Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपनी पलकों पे मेरे अश्क़ सजाते जाओमें ढल के निकलता क्यों हैदूर रह कर भी मुझे अपना बनाते जाओदर्द ये क़ल्ब में पलता क्यों है
रोशनी के लिए मैं भी हूँ परेशां लेकिनजबकि फ़ानी है जहाँ की हर चीज़फिर ये ज़रुरी तो नहीं आग लगाते जाओइंसान मचलता क्यों है
मिल गया भेस में इन्सां के फ़रिश्ता कोईतो है जो बचाता है उसेबात ये सारे ज़माने को बताते जाओवर्ना फिर गिर के सम्भलता क्यों है
इस भरी दुनिया तुम न समझोगे दिया मिट्टी कातेज़ आँधी में कोई तो भी जलता क्यों है मेरा अपनासाथ हो तुम मेरे एहसास दिलाते जाओ
ये मोहब्बत का तक़ाज़ा जान बाक़ी न हो दीपक में तो नहीं है फिर भीजाते जाते कोई एहसान जताते जाओ इश्क़ ए रुसवा मुझे बाज़ार में ले आया ये धुवाँ उससे निकलता क्यों है तुम भी औरों की तरह दाम लगाते जाओ
हक़परस्तों से गुज़ारिश वो जो आता है यही एक सियामुहाफ़िज़ बन करमेरी आवाज़ वो दरिन्दे में आवाज़ मिलाते जाओबदलता क्यों है
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,104
edits