रखवाते पिंजरे के अन्दर।
और सटाकर मुँह से कान,
पढ़ें पहाड़ा सौ शैतान।शैतान<ref>दरअसल मूल कविता में पहाड़ा पढ़ने वालों का परिचय ’उड़े’ बताया है, याने उड़िया लोग। जाने उस ज़माने में (१९२० के आसपास) बंगाली भद्रलोक उड़िया लोगों को क्या समझते थे। आजकल इस तरह की चीज़ आपत्तिजनक मानी जा सकती है, इसलिए मैंने 'शैतान' कर दिया।</ref>।
बनिये का खाता पकड़ाते,
इक्कीस पेज हिसाब कराते।
'''शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
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