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{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
}}
[[Category:गज़ल]]

सब कुछ खाक हुआ है लेकिन चेहरा क्या नूरानी है<br>
पत्थर नीचे बैठ गया है, ऊपर बहता पानी है<br><br>

बचपन से मेरी आदत है फूल छुपा कर रखता हूं<br>
हाथों में जलता सूरज है, दिल में रात की रानी है<br><br>

दफ़न हुए रातों के किस्से इक चाहत की खामोशी है<br>
सन्नाटों की चादर ओढे ये दीवार पुरानी है<br><br>

उसको पा कर इतराओगे, खो कर जान गंवा दोगे<br>
बादल का साया है दुनिया, हर शै आनी जानी है<br><br>

दिल अपना इक चांद नगर है, अच्छी सूरत वालों का<br>
शहर में आ कर शायद हमको ये जागीर गंवानी है<br><br>

तेरे बदन पे मैं फ़ूलों से उस लम्हे का नाम लिखूं<br>
जिस लम्हे का मैं अफ़साना, तू भी एक कहानी है<br><br>
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