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गुस्सा / महमूद दरवेश

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|रचनाकार=महमूद दरवेश|अनुवादक=अनिल जनविजय|संग्रह=
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काले हो गए
 
मेरे दिल के गुलाब
 
मेरे होठों से निकलीं
 
ज्वालाएँ वेगवती
 
क्या जंगल,क्या नर्क
 
क्या तुम आए हो
 
तुम सब भूखे शैतान!
 
हाथ मिलाए थे मैंने
 
भूख और निर्वासन से
 
मेरे हाथ क्रोधित हैं
 
क्रोधित है मेरा चेहरा
 
मेरी रगों में बहते ख़ून में गुस्सा है
 मुझे कसम क़सम है अपने दुख की  
मुझ से मत चाहो मरमराते गीत
 
फूल भी जंगली हो गए हैं
 
इस पराजित जंगल में
 
मुझे कहने हैं अपने थके हुए शब्द
 
मेरे पुराने घावों को आराम चाहिए
 
यही मेरी पीड़ा है
 एक अंधा अन्धा प्रहार रेत पर 
और दूसरा बादलों पर
 
यही बहुत है कि अब मैं क्रोधित हूँ
लेकिन कल आएगी क्रान्ति
लेकिन कल आएगी क्रान्ति'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''</poem>
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