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<poem>
गुज़री है रात कैसे सबसे कहेंगी आँखें
शरमा के ख़ुद से ख़ुद ही यारों यारो झुकेंगी आँखें
महबूब मेरे मुझको तस्वीर अपनी दे जा
होठों की मेरे कलियाँ कब तक नहीं खिलेंगी
अश्के लहू से आखिर आख़िर कब तक रचेंगी आँखें
सुख-दुःख हैं इसके पहलू ये ज़िन्दगी है सिक्का
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