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साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं / अख़्तर अंसारी
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|रचनाकार=अख़्तर अंसारी
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[[Category:ग़ज़ल]]
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं <br>
मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं <br><br>
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