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आभा बोधिसत्त्व

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/* आभा बोधिसत्त्व की रचनाएँ */
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== आभा बोधिसत्त्व की रचनाएँ==
 
बहनें
 
बहनें होती हैं,
अनबुझ पहेली सी
जिन्हें समझना या सुलझान इतना आसान नही. हॊता जितना लटों
की तरह उलझी हुई दुनिया को ,
 
इन्हें समझते और सुलझाते .......में
विदा करने का दिन आ जाता है न जाने कब
इन्हें समझ लिया जाता अगर वो होती ......
कोई बन्द तिजोरी.......
जिन्हे छुपा कर रखते भाई या कोई......
देखते सिर्फ.....
या ....कि होती .....
सांझ का दिया .....
जिनके बिना ......
न होती कहीं रोशनी....
 
पर नही़
बहने तो पानी होती है
बहती हैं.... इस घर से उस घर
प्यास बुझाती
जी जुड़ाती......किस किस का
किस किस के साथ विदा
हो जाती चुप चाप .....
 
दूर तक सुनाई देती उनकी
रुलाई......
कुछ दूर तक आती है....माँ
कुछ दूर तक भाई
सखियाँ थोड़ी और दूर तक
चलती हैं रोती धोती
......
फिर वे भी लौट जाती हैं घर
विदा के दिन का
इंतजार करने.....
इन्हें सुलझाने में लग जाते हैं...
भाई या कोई.......।
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