1,752 bytes added,
16:33, 13 अगस्त 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
ईस कृपा सों यदपि निवास स्थान अनेकन।
भिन्न भिन्न ठौरन पर हैं सब सहित सुपासन॥२३॥
बड़ी बड़ी अट्टालिका सहित बाग तड़ागन।
नगर बीच, वन, शैल, निकट अरु नदी किनारन॥२४॥
इष्ट मित्र अरु सुजन सुहृद सज्जन संग निसि दिन।
जिन मैं बीतत समय अधिक तर कलह क्लेश बिन॥२५॥
अति बिशाल परिवार बीच मैं प्रेम परस्पर।
यथा उचित सन्मान समादर सहित निरन्तर॥२६॥
रहत मित्रता को सो बर बरताव सदाहीं।
इक जनहूँ को रुचत काज सों सबहिं सुहाहीं॥२७॥
रहत तहाँ तब लगि सों, जाको जहाँ रमत मन।
निज निज काज बिभाग करत चुप चाप सबै जान॥२८॥
एक काज को तजत, पहुँचि तिहि और सँभालत।
होन देत नहिं हानि भली विधि देखत भालत॥२९॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader