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यादें तुम्हारी / ओम पुरोहित ‘कागद’
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19:29, 13 अगस्त 2016
सुनता-देखता हूँ
तुम्हारी स्मृतियों की
उन्मुक्त कहानी !
दिल में
मौन का पत्थर
इस लिए था
दिल बहुत
भारी ।
भारी।
आँखों में थीं
रात-रात भर
लाल आँखो से
श्वेत-खारा
पानी ।
पानी।
हर रात
उमड़-घुमड़ दिल
जम कर कभी
क्यों नहीं होती बारिश !
</poem>
Sharda suman
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