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17:20, 18 अगस्त 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
भरो जल सुन्दर रूप अनूप,
::सरीरहि है सर स्वच्छ नवीन।
मृणाल भुजा त्रिबली है तरंग,
::तथा चकवाक पयोधर पीन॥
सजे घन प्रेम भरी रमनी सिर,
::वार सवार सिवार अहीन।
अहो यह नाचत हैं मुख पैं दृग,
::ज्यों इक वारिज पै जुग मीन॥
</poem>
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