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नेत्र - 1 / प्रेमघन

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{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
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<poem>
अनुराग पराग भरे मकरन्द लौं,
::लाज लहे छबि छाजत हैं।
पलकैं दल मैं जनु पूतलि मत्त,
::मलिन्द परे सम साजत हैं॥
घन प्रेम रसै बरसै सुचि सील,
::सुगन्ध मनोहर भ्राजत हैं।
सर सुन्दरता मुख माधुरी वारि,
::खिले दृग कंज विराजत हैं॥
</poem>
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