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16:50, 25 अगस्त 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश प्रत्यूष
|संग्रह=
}}
[[Category:कविता]]
{{KKCatKavita}}<poem>
तुम
हमेशा अकेली नजर आती हो
भट्ठी में फूलती
एक अदद रोटी की तरह
जिसे पाने के लिए
उगाता रहा हूं मैं
अपनी हथेलियों पर
- अनगिनत छाले
काफी बचपन से
</poem>