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वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।<br>
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है;<br>
थककर बाइठ बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।<br><br>
दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,<br>
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