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{{KKRachna
| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
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आपका मामला नहीं छूटा
ओ हमारा गला नहीं छूटा I

ईंट-पत्थर तलक़ से रगड़ा है
इस क़दर था जला नहीं छूटा I

आपके ज़हन में तहे-तह है
मैल , काफ़ी मला नहीं छूटा I

छूट जाने को क्या नहीं छूटा
सिर्फ़ ये मशग़ला , नहीं छूटा I

कैसे कैसे तो छूट निकले 'दीप'
और अच्छा भला नहीं छूटा I
</poem>