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16:32, 16 सितम्बर 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
पीने दें मयकशों को जहाँ भी पिया करें
सज़दा-वुजू करें न करें , बस दोआ करें I
वे ख़ैरख़्वाह लोग ही उसके क़तल में थे
अच्छा है इस शहर से ज़रा फ़ासला करें I
कानों ने क्या सुना था ज़बानों ने क्या कहा
इन्सानियत घटी है यहाँ कम मिला करें I
रूपोश फिर रहे हैं , रिसायत के बादशाह ?
गद्दी पे फिर ये कौन है ? चलिये पता करें I
अम्ने-जहाँ को झोंक दी अपनी जवानियाँ
इससे ज़ियादा 'दीप' भला और क्या करें ?
</poem>