807 bytes added,
16:37, 16 सितम्बर 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मेरे हक़ में भी , डाल दे मुझको
या तो ढँग से निकाल दे मुझको I
इस तरह मुझको मौत आएगी ?
और गहरा मलाल दे मुझको I
अपने गिरने की ज़िम्मेदारी ली
यकदफ़ा बस उछाल दे मुझको I
कुछ न कुछ तो कमाल निकलेगा
ले ! पकड़कर खँगाल दे मुझको I
उसकी मरज़ी है 'दीप' दे झटका
या कि सूरत-हलाल दे मुझको I
</poem>