1,176 bytes added,
17:11, 24 अक्टूबर 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुरली चंद्राकर
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
येदे जिनगी जनम होगे हांसी वो दाई मोर
रोई रोई काटेंव दिन राती
ननपन में मुंह देखनी होगे, होगे मंगनी जचनी
मड़वा खाल्हे भांवर गिंजरेव, चंदा सुरुज दुई साखी वो
रोई रोई काटेंव दिन राती
पीरा बने हिरदे में समागे, काया जरे जस बाती
सोर संदेस अविरथा होगे, कागज कोर पाती वो
रोई रोई काटेंव दिन राती
मैके ससुरे मयारू नंदागे, खोजे काकर छैंहा
ताना में तन छलनी होगे, मोटियारी एहँवाती
वो दाई मोर रोई रोई काटेंव दिन राती
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader