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चारु चंद्र की चंचल किरणें / मैथिलीशरण गुप्त
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:स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
:मानों
'''
झीम
'''
रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
'''( झीम= झपकी लेना)'''
पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
वीरबाला
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