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बिन पानी / बुधराम यादव
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21:27, 27 अक्टूबर 2016
पानी धलव अटाथे!
नदिया खँड गहिरा झिरिया म
रेती सिरिफ तकाथे
*
!
भाजी भांटा कोंचइ कॉंदा
बिन पानी का जगरंय !
हरियर चारा दुबी झुरागंय
गाय गरू का बगरंय!
रसाताल
*
के पानी सोत ह
दिनो दिन गहिरावत हें!
चिमनी दीया बुझावंय झप-झप
बिना तेल का बारंय!
अँधियारी म टमड़त
*
परछी
बर मनटोरा जावय!
सन्डमइला
*
काड़ी ल बपरी
*
लकर-धकर
*
सुलगावय!
अब एक ल बती ह घर घर
म अंजोर बगरावत हें!
गाँव-गौटिया बड़े किसनहा
गाँव-गंवतरी
*
जावंय।छकड़ा-गाड़ी
*
घोड़ा-बघ्घी
खूब सुघर संभरावंय!
गर भर घुंघरू कौड़ी बांधय
माथा मलमल पट्टी!
मूंगा माला अउ जुगजुगी
नाथत जावंय सत्तीं
*
!
अब दरवजा फटफटही अउ
जीप कार घर्रावत हें!
छन छन खन खन घंरा बाजंय
सरपट बैला भागंय !
चमकंय झझकंय डहर चलइया
सुतनिंदहा मन जागंय !
ढरका फुदकी टपटप टपटप
धोड़ा चाल देखावंय !
चाबुक देखे बिदकंय बैरी
जोरहा हिन हिनावय !
बर बिहाव सरकस म अब तो
धोड़ा कभू नचावत हें !
</poem>
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